Go To Mantra

यज॑न्ते अस्य स॒ख्यं वय॑श्च नम॒स्विनः॒ स्व ऋ॒तस्य॒ धाम॑न्। वि पृक्षो॑ बाबधे॒ नृभिः॒ स्तवा॑न इ॒दं नमो॑ रु॒द्राय॒ प्रेष्ठ॑म् ॥५॥

English Transliteration

yajante asya sakhyaṁ vayaś ca namasvinaḥ sva ṛtasya dhāman | vi pṛkṣo bābadhe nṛbhiḥ stavāna idaṁ namo rudrāya preṣṭham ||

Pad Path

यज॑न्ते। अ॒स्य॒। स॒ख्यम्। वयः॑। च॒। न॒म॒स्विनः॑। स्वे। ऋ॒तस्य॑। धाम॑न्। वि। पृक्षः॑। बा॒ब॒धे॒। नृऽभिः॑। स्तवा॑नः। इ॒दम्। नमः॑। रु॒द्राय॑। प्रेष्ठ॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:36» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन सङ्ग करने योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (स्वे) अपने (नमस्विनः) बहुत अन्नयुक्त जन (ऋतस्य) सत्य के (धामन्) धाम में वर्त्तमान (अस्य) इस की (सख्यम्) मित्रता को (वयः) जीवन को तथा (पृक्षः) अच्छे प्रकार सङ्ग करने योग्य अन्न को (यजन्ते) सङ्ग करते हैं जो निश्चय से (नृभिः) नायक मनुष्यों के साथ (स्तवानः) स्तुति किया हुआ (रुद्राय) रुलानेवाले के लिये (इदम्) इस (प्रेष्ठम्) अत्यन्त प्रिय और (नमः) अन्न आदि पदार्थ को (वि, बाबधे) विशेषता से बाँधता है उस (च) और उन को हम लोग सङ्ग करावें ॥५॥
Connotation: - जो अच्छे पुरुष सङ्ग करनेवाले, सब के मित्र और सब का दीर्घ जीवन अन्नादि ऐश्वर्य्य को करना चाहते हैं, वे ही लोक में अत्यन्त प्यारे होते हैं ॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

के सङ्गन्तुमर्हा भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

ये स्वे नमस्विन ऋतस्य धामन् वर्तमानस्यास्य सख्यं वयः पृक्षश्च यजन्ते यो हि नृभिस्सह स्तवानो रुद्राय इदं प्रेष्ठं नमो वि बाबधे तं ताँश्च वयं सङ्गमयेम ॥५॥

Word-Meaning: - (यजन्ते) सङ्गच्छन्ते (अस्य) (सख्यम्) मित्रत्वम् (वयः) जीवनम् (च) (नमस्विनः) बह्वन्नादियुक्तः (स्वे) स्वकीयाः (ऋतस्य) सत्यस्य (धामन्) धामनि (वि) (पृक्षः) सम्पर्चनीयमन्नम् (बाबधे) बध्नाति (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (स्तवानः) स्तूयमानः (इदम्) सुसंस्कृतम् (नमः) अन्नादिकम् (रुद्राय) (प्रेष्ठम्) अतिशयेन प्रियम् ॥५॥
Connotation: - ये सत्पुरुषा अभिसंधिनः सर्वस्य सुहृदस्सर्वेषां दीर्घं जीवनं अन्नाद्यैश्वर्यं चिकीर्षन्ति त एव लोके प्रियतमा जायन्ते ॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे सत्पुरुषांचा संग करणारे, सर्वांचे मित्र, दीर्घ जीवन व अन्न इत्यादी ऐश्वर्य देऊ इच्छितात तेच या जगात प्रिय असतात. ॥ ५ ॥